मीर ग़ालिब फैज़ अब नहीं शायद, मेरी तस्लीम इनसे मगर ज़ारी है |
kam shabdon ke aaine me poora jahan
सत्य कहती रचना
बहुत खूबसूरत एहसास |और उतनी ही सुंदर रचना .
behtareen
kah sabdo me bhut kuch chupa hai... bhut hi sunder...
देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर .....इससे उपयुक्त टिप्पड़ी आपकी कविता के लिए नही मिली मुझे नीरज जी ..चार पंक्तियों में ही सारा कुछ कह गए आप अच्छा लगा आता रहूँगा आगे भी !
laazwaab.
Achha laga aapke yahan aa kar neeraj.
बहुत सुंदर रचना ....
kam shabdon ke aaine me poora jahan
ReplyDeleteसत्य कहती रचना
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत एहसास |
ReplyDeleteऔर उतनी ही सुंदर रचना .
behtareen
ReplyDeletekah sabdo me bhut kuch chupa hai... bhut hi sunder...
ReplyDeleteदेखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर .....
ReplyDeleteइससे उपयुक्त टिप्पड़ी आपकी कविता के लिए नही मिली मुझे नीरज जी ..चार पंक्तियों में ही सारा कुछ कह गए आप अच्छा लगा आता रहूँगा आगे भी !
laazwaab.
ReplyDeleteAchha laga aapke yahan aa kar neeraj.
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना ....
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