Saturday, April 9, 2011

फीके पन्नों से ...

मेरी आँखों में अपना अक्स देख के वो मुस्कुराई, 
बोली - "इतना प्यार करते हो मुझसे ?" 
मैं शर्मिंदा हुआ, 
कैसे समझाता, 
"ये आईने हैं |"



[Statue in the Garden by Jean Gordon]

9 comments:

  1. बहुत खूबसूरत एहसास |
    और उतनी ही सुंदर रचना .

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  2. kah sabdo me bhut kuch chupa hai... bhut hi sunder...

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  3. देखन में छोटे लगें घाव करें गंभीर .....
    इससे उपयुक्त टिप्पड़ी आपकी कविता के लिए नही मिली मुझे नीरज जी ..चार पंक्तियों में ही सारा कुछ कह गए आप अच्छा लगा आता रहूँगा आगे भी !

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