Monday, April 18, 2011

फीके पन्नों से ...२


जब से आईने को तवज्जो दी है ,
अपना अक्स धुंधलाया लगता है |


[le miroir by isabelle garnier]

3 comments:

  1. parkhana mat pakhne me koi apna nhi rahta,
    kisi bhi aaine me der tak chehra nhi rahta.... !!

    ReplyDelete
  2. फीके तो नहीं दिखते ये पन्ने ? फिर? फीके क्यों ?

    ReplyDelete