मैं पूरी तह समझता हूँ कि आप लोगों को न तो मेरी त्रिवेणियों में कुछ इंटेरेस्ट है, न ही वो समझ आ रही हैं, लेकिन मुझे उम्मीद ही नहीं पूरा यकीन भी है कि मैं अपने समय से आगे के चीज़ लिख रहा हूँ| कृत्रिम बुद्धिमता वाले भविष्य के रोबोट जरूर मेरी त्रिवेणियाँ समझकर मुझे उचित सम्मान देंगे|
मेरे आँगन में एक बूढा दरख़्त था,
उसकी शाखों पे बैठ के गुज़रा मेरा बचपन,
पोते उस डाइनिंग टेबल पे खाना गिराते हैं अभी|
उसकी शाखों पे बैठ के गुज़रा मेरा बचपन,
पोते उस डाइनिंग टेबल पे खाना गिराते हैं अभी|
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ख्वाब तेरा हो आँखों में और नींद भी आ जाये,
यूँ बेवफाई का इलज़ाम न लगाया करो हमपे,
मेरी आँखों के मजबूरियों को तो समझो|
मेरी तन्हाईयाँ भी मुझे तनहा छोड़ जाती है|
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हो जो दुआ सलाम भी तो फायदा उठाते है लोग,
जिंदगी में बहुत धोखा खाया है , मगर अब नहीं.
ए खुदा, आज से हमारा कोई रिश्ता नहीं|
यूँ बेवफाई का इलज़ाम न लगाया करो हमपे,
मेरी आँखों के मजबूरियों को तो समझो|
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लहू से सींचते हैं, जख्म से सहलाते हैं |
बावफा जिससे हम , वही क्यूँ बेवफा होता है
मेरी तन्हाईयाँ भी मुझे तनहा छोड़ जाती है|
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हो जो दुआ सलाम भी तो फायदा उठाते है लोग,
जिंदगी में बहुत धोखा खाया है , मगर अब नहीं.
ए खुदा, आज से हमारा कोई रिश्ता नहीं|
बढ़िया लगीं सारी त्रिवेणियाँ ..बरगद वाली विशेष रूप से
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना का लिंक मंगलवार 23 -11-2010
ReplyDeleteको दिया गया है .
कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया ..
http://charchamanch.blogspot.com/
ये तो पता नही की क्रतिम बुद्धि है या असल .... पर आपकी त्रिवेनियों में कुछ दम तो है ...
ReplyDeleteसार्थक अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteha ha ha !
ReplyDeleteaa rahe hain aapke haikus samajh mein ! main ekl robot hun !:-)
barhiya !
keep writing.