Saturday, May 14, 2011

फीके पन्नों से ... ३

वक़्त कब परछाई बन कर गायब हो जाता है, पता ही नहीं चलता | कभी हम जैसा होता है, फिर हमसाया बन जाता है | रौशनी के ठीक नीचे हमें पता ही नहीं चलता कि हमारा साया हमारे साथ खड़ा है | हम चुपचाप चल देते हैं | वो साया भी नज़र आने लगता है | अब वो हमारे साथ ही है, पर पल पल चलते रहने से वो भी चलता जाता है | और अचानक ख़त्म हो जाता है | हर गली पर ये रौशनी थोड़ी देर के लिए एक साया देती हैं, मानों हमारे अकेलेपन के लिए एक साथी दे रही हो | कुछ देर साथ चलकर वो साया ख़त्म हो जाता है, हमें किसी और साये का साथ देकर | एक के बाद एक अँधेरा, एक के बाद एक साया | जिंदगी शायद इसी रास्ते का नाम है | वो साये, हर एक पल के अहसास होते हैं | जितनी तेज़ हमारी चाल होती है, वो साये हर वक़्त हमसे तेज़ होते हैं, वक़्त के जैसे | 


[Image Courtesy :Antonio Bassi]