एक बहता सा नीला समय है, और मैं हूँ ।
जन्म लेता हूँ , चौरासी लाख अलग अलग जानवरों में ।
फिर से बनता हूँ इंसान,
फिर से शर्मिंदा होता हूँ ।
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ऊपर से गिरता है समय,
मैं चीखता हूँ ।
मेरा नाम जगुआर पाव है ।
मेरे बाप ने, और उसके बाप ने राज किया है इस जंगल पे,
मेरे बाद मेरे बेटे करेंगे ।
समय की लहरों पर लेकिन,
कई जलपोत हैं इंसानों से भरे ।
जन्म लेता हूँ , चौरासी लाख अलग अलग जानवरों में ।
फिर से बनता हूँ इंसान,
फिर से शर्मिंदा होता हूँ ।
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ऊपर से गिरता है समय,
मैं चीखता हूँ ।
मेरा नाम जगुआर पाव है ।
मेरे बाप ने, और उसके बाप ने राज किया है इस जंगल पे,
मेरे बाद मेरे बेटे करेंगे ।
समय की लहरों पर लेकिन,
कई जलपोत हैं इंसानों से भरे ।
(From 'Apocalypto')
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धुंध बन गयी है दुनिया,
समय के पास फुर्सत नहीं बात करने की ।
वो भाग रहा उलटी दिशा में,
वो भाग रहा उलटी दिशा में,
दुनिया को बचाने के लिए,
दुनिया गर नहीं तो उसको कौन पूछेगा ।
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आज वो ऊपरवाला नहीं,
आज नीचे कुछ नहीं ।
लेकिन वो बैठा है सर्दी की धूप में ।
माल्टे छील रहा है , फिर नमक भूल गया ।
अरे यार दुनिया भी तो बनानी है,
उसे याद आया ।
सार्थक , सामयिक पोस्ट , आभार
ReplyDeleteplease visit my blog.
वो दुनिया बनाकर पछताया होगा ...
ReplyDeleteउसने भी गलत छपाई के कारन
अफ़सोस मनाया होगा..
शाम को..
दो पेग पीने के उसने भी सोचा होगा..
दुनिया बनाने ख्याल ही क्यों आया.
वाह!
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