Saturday, January 21, 2012

samay टैम्

एक बहता सा नीला समय है, और मैं हूँ ।
जन्म लेता हूँ , चौरासी लाख अलग अलग जानवरों में ।
फिर से बनता हूँ इंसान,
फिर से शर्मिंदा होता हूँ ।

*****


ऊपर से गिरता है समय,
मैं चीखता हूँ ।
मेरा नाम जगुआर पाव है ।
मेरे बाप ने, और उसके बाप ने राज किया है इस जंगल पे,
मेरे बाद मेरे बेटे करेंगे ।
समय की लहरों पर लेकिन,
कई जलपोत हैं इंसानों से भरे ।
(From 'Apocalypto')

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धुंध बन गयी है दुनिया,
समय के पास फुर्सत नहीं बात करने की ।
वो भाग रहा उलटी दिशा में,
दुनिया को बचाने के लिए,
दुनिया गर नहीं तो उसको कौन पूछेगा ।

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आज वो ऊपरवाला नहीं,
आज नीचे कुछ नहीं ।
लेकिन वो बैठा है सर्दी की धूप में ।
माल्टे छील रहा है , फिर नमक भूल गया ।
अरे यार दुनिया भी तो बनानी है,
उसे याद आया ।



3 comments:

  1. सार्थक , सामयिक पोस्ट , आभार
    please visit my blog.

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  2. वो दुनिया बनाकर पछताया होगा ...
    उसने भी गलत छपाई के कारन
    अफ़सोस मनाया होगा..

    शाम को..
    दो पेग पीने के उसने भी सोचा होगा..
    दुनिया बनाने ख्याल ही क्यों आया.

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