Saturday, November 26, 2011

डायरी का लास्ट पेज

मौत बेवजह चीज नहीं है | कभी कभी इसकी बेहद जरूरत महसूस होती है | कभी कभी लगता है कि शायद अब मरकर ही चैन मिलेगा | मरने से एक पल पहले जब मैं आखिरी सांस में अपने आस पास देखूंगा , और आँखों में एक संतुष्टि और परायेपन का भाव लेकर सबको नज़र भरकर देखूंगा तो क्या मंजर होगा ! जिंदगी क्या खूबसूरत होगी ! मौत के पहले दो लम्हों की जिंदगी | मरने के बाद मेरी लाश के साथ कोई क्या करेगा, पता नहीं | मुझे कोई चार जूते मारे , मेरे मुंह पर थूक दे या मेरे बाल नोच ले | मेरी आँखें उँगलियाँ डाल के बाहर निकाल दे | लेकिन उससे पहले के दो पल मैं सारे लोगों के लिए इतना धिक्कार भर जाऊँगा कि दुनिया उनके लिए एक अँधेरे से ज्यादा अहमियत नहीं रखेगी | जिंदगी एक जरूरी हादसा है , और मौत उसका इलाज | मौत मांगने की ये आदत उसकी जरूरी डोज़ है | काश, मरना इतना आसान होता कि कोई मांगता मौत और मिल जाती उसे | मुकद्दर  हर आदमी अपना भाग्य खुद चुनता है , तो हर आदमी अपनी जिंदगी का सही तरीके से व्यापार करने की जद्दोजहद में रहता है | 151 रु ^ पंडित है में *


4 comments:

  1. इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.

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  2. जिंदगी एक जरूरी हादसा है , और मौत उसका इलाज |...mujhse vaada hai - milegi wo

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  3. बहुत जतन कर के मौत के बारे मं पढ़ना पड़ा नीरज...
    पता नहीं क्यों मेरी स्क्रीन पर ये फॉण्ट सहीं नहीं दिख रहा.

    बाकी उदासियों का मौसम कब छंटेगा..

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  4. अनुभवहीनता झलकती है इस लेख में... कर किसी को वो दो पल नसीब नहीं होते... स्वार्थ है ये..
    एक दुखी मन के लिए ये कुछ कुछ वैसा ही है जैसे बाल मन के लिए परीकथा !!!

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